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हरिद्वार : कार्तिक पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में विशेष आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह त्यौहार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे गंगा स्नान, दीपदान, हवन-पूजन और कई धार्मिक अनुष्ठानों के लिए पवित्र माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का संबंध न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से है, बल्कि यह स्वास्थ्य, प्राकृतिक चिकित्सा और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन गंगा एवं अन्य नदियों में स्नान करना, योग एवं प्राणायाम करना, जल चिकित्सा का पालन करना और पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लेना भारतीय संस्कृति में प्रमुख स्थान रखता है। इस लेख में हम कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व, स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का योगदान, जल चिकित्सा का महत्व और पर्यावरण संरक्षण से इसका गहरा संबंध।
कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा भारतीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं में गहरी आस्था का पर्व है। इसे देव-दीपावली के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “देवताओं की दीपावली”। इस दिन माना जाता है कि भगवान विष्णु एवं अन्य देवता पृथ्वी पर आकर गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यही कारण है कि इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।
- देवताओं का आह्वान : इस दिन को देवताओं की पूजा-अर्चना का दिन माना गया है। विभिन्न धर्मग्रंथों जैसे पद्म पुराण और स्कंद पुराण में इस दिन के महत्व का वर्णन मिलता है। इस दिन भगवान शिव और विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और दीपदान कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और दीप जलाने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।
- धार्मिक अनुष्ठान और उपासना : कार्तिक मास को भगवान विष्णु और शिव की उपासना का महीना माना जाता है। इस दिन गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत ही पुण्यदायी माना गया है। इसे करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है और भक्त को मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और प्राकृतिक चिकित्सा का योगदान
कार्तिक पूर्णिमा का मौसम शरद ऋतु का होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी है। इस मौसम में वायु में स्वाभाविक शीतलता होती है जो शरीर एवं मन को संतुलित बनाए रखने में सहायक होती है। इस दौरान सूर्य की किरणें भी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं। शरद ऋतु का मौसम शरीर में ऊर्जा और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए अनुकूल माना जाता है।
- गंगा स्नान और जल चिकित्सा : कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने की परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों के अनुसार, ठंडे पानी में स्नान करना शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, रक्त संचार को बेहतर करता है और मानसिक तनाव को कम करता है। गंगा का पानी इसमें पाए जाने वाले औषधीय तत्वों के कारण विशेष गुणकारी माना गया है, जो त्वचा और शरीर को शुद्ध करता है।
- प्राकृतिक चिकित्सा और योग : कार्तिक पूर्णिमा पर लोग योग, ध्यान और प्राणायाम का भी अभ्यास करते हैं, जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित रखने में सहायक होते हैं। योग विज्ञान के अनुसार, इस दिन सूर्य की ऊर्जा अत्यधिक लाभकारी होती है और इसे प्राणायाम के माध्यम से शरीर में संचित करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। योग आसन और प्राणायाम करने से शरीर के ऊर्जा केंद्र सक्रिय होते हैं और मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
जल चिकित्सा और अन्य चिकित्सा विधाओं में कार्तिक पूर्णिमा का योगदान
जल चिकित्सा एक ऐसी प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, जिसमें पानी का उपयोग विभिन्न बीमारियों के उपचार में किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जल स्नान और जल का सेवन विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
- जल चिकित्सा के लाभ : जल चिकित्सा से रक्तचाप, जोड़ों के दर्द, त्वचा संबंधी समस्याएं और पाचन संबंधी विकारों में सुधार होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर नदियों में स्नान करते समय ठंडा पानी शरीर को तरोताजा करता है, रक्त प्रवाह को तेज करता है और मन को शांति प्रदान करता है। आयुर्वेद के अनुसार, ठंडे पानी में स्नान से शरीर के तंतु मजबूत होते हैं और विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
- प्राकृतिक औषधीय तत्वों का प्रभाव : गंगा और अन्य पवित्र नदियों के पानी में प्राकृतिक औषधीय तत्व पाए जाते हैं जो जल चिकित्सा में सहायक होते हैं। गंगा जल में विशेष प्रकार के बैक्टीरिया-विरोधी तत्व पाए गए हैं, जो त्वचा और संक्रमण को रोकने में सहायक होते हैं। इस दिन जल चिकित्सा और गंगा स्नान द्वारा शरीर की आंतरिक और बाहरी शुद्धि होती है।
- योग और प्राणायाम की भूमिका : जल चिकित्सा के साथ योग और प्राणायाम भी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सिद्ध होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष ध्यान, प्राणायाम और ध्यान करते समय वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे तन और मन की शुद्धि होती है। योग और ध्यान की यह प्रक्रिया न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति के लिए भी लाभकारी मानी जाती है।
पर्यावरण संरक्षण और कार्तिक पूर्णिमा का संबंध
कार्तिक पूर्णिमा का पर्व केवल आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन किए जाने वाले अनुष्ठान जैसे गंगा स्नान, दीपदान और वृक्षारोपण पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।
- जल संरक्षण का महत्व : गंगा और अन्य नदियों का स्नान हमें यह स्मरण कराता है कि जल हमारे जीवन का अमूल्य स्रोत है और इसे स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा एवं अन्य नदियों में स्नान करने के माध्यम से लोग जल की पवित्रता का अनुभव करते हैं और जल स्रोतों को स्वच्छ एवं प्रदूषणमुक्त रखने का संकल्प लेते हैं।
- वृक्षारोपण और पर्यावरण के प्रति जागरूकता : इस दिन विशेषकर वृक्षारोपण और प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कई स्थानों पर लोग नदियों के किनारे वृक्षारोपण करते हैं और नदियों की स्वच्छता बनाए रखने का संकल्प लेते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति से हमारा गहरा संबंध है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
- प्लास्टिक मुक्त पर्व का संकल्प : कार्तिक पूर्णिमा के दौरान नदियों के किनारे होने वाले आयोजन हमें प्लास्टिक और अन्य प्रदूषणकारी तत्वों का उपयोग न करने की प्रेरणा देते हैं। इस पर्व पर यह संकल्प लेना चाहिए कि जल एवं प्रकृति की स्वच्छता के लिए हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे।
कार्तिक पूर्णिमा का पर्व केवल धार्मिक एवं सांस्कृतिक नहीं है बल्कि स्वास्थ्य, प्राकृतिक चिकित्सा और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जल, पर्यावरण और प्रकृति के प्रति हमारा कर्तव्य कितना महत्वपूर्ण है। गंगा स्नान, योग और जल चिकित्सा के माध्यम से हम न केवल अपने शरीर को शुद्ध करते हैं बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी प्राप्त करते हैं।इस कार्तिक पूर्णिमा पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि नदियों और प्रकृति की सुरक्षा और संरक्षण के लिए समर्पित रहेंगे। आध्यात्मिक उन्नति के साथ स्वस्थ जीवन और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।
- रुचिता उपाध्याय, प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विज्ञान प्रमोटर अश्वमेध हेल्थ एवं वैलनेस संस्थान, हरिद्वार।