देहरादून। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र में इस दिसंबर एक ऐतिहासिक धार्मिक घटना होने जा रही है। उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र में न्याय के देवता और आस्था के सबसे बड़े प्रतीक माने जाने वाले छत्रधारी चालदा महासू महाराज पहली बार हिमाचल की धरती पर कदम रखने जा रहे हैं। देवता 14 दिसंबर को शिलाई क्षेत्र के पश्मी गांव में नवनिर्मित भव्य मंदिर में विराजमान होंगे।
देवयात्रा का सबसे अनोखा हिस्सा यह है कि महासू महाराज उत्तराखंड के दसऊ गांव से लगभग 70 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करते हुए टौंस नदी पार कर हिमाचल में प्रवेश करेंगे। 13 दिसंबर को मीनस पुल के रास्ते हिमाचल सीमा में पहुंचकर द्राबिल गांव में रात्रि विश्राम करेंगे और अगले दिन 14 दिसंबर को पश्मी गांव पहुंचकर मंदिर में विधिवत विराजमान होंगे।
पश्मी और घासन गांव के ग्रामीणों ने पिछले कई वर्षों की मेहनत से करीब दो करोड़ रुपये खर्च कर भव्य महासू मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार पूरा किया है। पश्मी के 45 और घासन के 15 परिवारों ने चंदा और श्रमदान से यह पुनीत कार्य संपन्न किया। मंदिर की ध्वजा पहले ही स्थापित हो चुकी है, लेकिन कपाट महासू महाराज के आगमन के बाद ही खोले जाएंगे।
इस देव-प्रवास की नींव 2020 में उस समय पड़ी जब लॉकडाउन के दौरान दसऊ गांव से एक विशाल बकरा (घांडुवा) अचानक पश्मी गांव में आकर रुक गया। दो साल तक ग्रामीण इसे सामान्य पशु समझते रहे, लेकिन 2022 में देव वक्ता ने बताया कि यह चालदा महासू का दिव्य दूत है, जो देव-प्रवास से पहले भेजा जाता है। इसके बाद बकरे को पूर्ण सम्मान मिलने लगा और वह आज भी गांव में देव प्रतीक के रूप में मौजूद है।
देवयात्रा के सुचारु संचालन के लिए श्री महासू महाराज सेवा समिति गठित की गई है, जिसमें दिनेश चौहान (बजीर), रघुवीर सिंह (भंडारी) और पंडित आत्माराम शर्मा (मुख्य पुजारी) प्रमुख जिम्मेदारी निभा रहे हैं। पश्मी गांव में इन दिनों त्योहार सा माहौल है। घर-घर दीपमाला, देव ध्वज और रंग-बिरंगी सजावट की गई है। ग्रामीणों का कहना है कि सदियों बाद मिल रहे इस पुण्य अवसर से पूरा क्षेत्र धन्य हो गया। रोजाना हजारों श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। हिमाचल और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को एक सूत्र में बांधने वाला यह दुर्लभ आयोजन दोनों राज्यों के लिए ऐतिहासिक क्षण साबित होगा।
