हिमालय की झीलों के आकार में पिघलते ग्लेशियरों से हो रही बढ़ोतरी

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बंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि 2016-17 में पहचानी गईं हिमालय की 2,431 झीलों में से कम से कम 89 प्रतिशत का 1984 के बाद से उल्लेखनीय विस्तार हुआ है।  इसरो के विश्लेषण के नतीजें चिंताजनक हैं क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियल झीलों के विस्तार से निचले क्षेत्रों में व्यापक परिणाम हो सकते हैं। इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 1984 से 2023 तक भारतीय हिमालयन नदी घाटियों के जलग्रहण क्षेत्रों को कवर करने वाली दीर्घकालिक उपग्रह इमेजरी झीलों में हुए महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत देती है। इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 601 ग्लेशियल झीलें, दोगुने से अधिक विस्तारित हो गई हैं और 10 झीलें अपने आकार से दोगुना बढ़ गई हैं। वहीं 65 झीलों का विस्तार 1.5 गुना हुआ है। 

10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 ग्लेशियल झीलों में से 676 का काफी विस्तार हो चुका है। और इनमें से कम से कम 130 झीलें भारत में हैं – 65 (सिंधु नदी बेसिन), 7 (गंगा नदी बेसिन), और 58 (ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन) की हैं। इसरो ने जारी रिपोर्ट ‘सैटेलाइट इनसाइट्स: एक्सपेंडिंग ग्लेशियल लेक इन द इंडियन हिमालय’ में कहा कि ‘ऊंचाई आधारित विश्लेषण से पता चलता है कि 314 झीलें 4,000 से 5,000 मीटर की सीमा में स्थित हैं, और 296 झीलें 5,000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर हैं।

इसरो ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में 4,068 मीटर की ऊंचाई पर स्थित घेपांग घाट ग्लेशियल झील (सिंधु नदी बेसिन) में दीर्घकालिक परिवर्तन 1989 और 2022 के बीच आकार में 178 प्रतिशत की वृद्धि को 36.49 से 101.30 हेक्टेयर तक बढ़ाते हैं. वृद्धि की दर लगभग 1.96 हेक्टेयर प्रति वर्ष है।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने इसकी वजह अंधाधुंध आधुनिकरण को बताया। विकास के नाम पर संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी आज नहीं तो कल भारी पड़ेगी।

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