गोपेश्वर (चमोली)। चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के भीमतल्ला गांव की सरस्वती देवी हस्तशिल्प से कालीन तथा शॉल बनाकर आजीविका को सुदृढ़ करने में जुटी है। इससे उसकी आर्थिक स्थिति भी मजबूती की ओर बढ़ रही है।
भीमतल्ला गांव में ही रह कर सरस्वती ने कालीन और शॉल बनाने का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के जरिए हस्तशिल्प कला में वह दक्ष बनती गई। देखते ही देखते उसने दोखा एवं कालीन को बनाने का बीड़ा उठाया। इसमें पारंगत बनने के उसे विभागीय स्तर पर पुरस्कार भी प्रदान किया गया। इससे प्रोत्साहित होकर सरस्वती ने कालीन, चुटका तथा थुलमा बनाने की दिशा में हाथ बढ़ाए। इस तरह के प्रयास रंग लाने लगे और वह हस्तकला के जरिए आर्थिकी को बढ़ावा देकर आजीविका को लेकर सुरक्षित होने लगी। गौचर मेले में हस्तशिल्प कला प्रदर्शनी में उसने प्रथम स्थान हासिल किया। इसके चलते उद्योग विभाग ने सरस्वती देवी के कौशल को देखते हुए उसे मास्टर ट्रेनर के रूप में तैनाती दी। मास्टर ट्रेनर के रूप में वह बुनकरों को प्रशिक्षित कर दक्ष बनाने लगी। इसके चलते तमाम जनजाति महिलाएं हस्त कला के क्षेत्र में कदम बढ़ाकर आर्थिक तौर पर मजबूत होने लगी।
सरस्वती देवी ने बताया कि हस्तकला के जरिए आज वह समृद्ध हो गई है। इसके जरिए वह नई इबारत लिखने जा रही है। कहा कि एक दौर में आजीविका का संचालन उसके लिए चुनौतीपूर्ण बना था किंतु अब हालात पूरी तरह बदल गए है। इसकी देखा देखी अन्य गांव के लोग भी करने लगे है। उनका कहना था कि हस्तशिल्प कला में डियाजन पर फोकस किया जा रहा है। इसके चलते उत्पादों के विपणन में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। सीमांत नीती तथा माणा घाटी जनजाति महिलाएं पहले से ही बुनकर तथा हस्तशिल्प कला के क्षेत्र में रूचि रखती आयी है। अब तो यात्राकाल में बाजार मिलने के चलते उत्पादों के विपणन में दिक्कतें नहीं उठानी पड़ रही है। इससे मेहनताना अच्छा मिल रहा है और आर्थिक समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त हो रहा है।