देहरदून : पिथौरागढ़ के टकाना थाना क्षेत्र में वर्ष 2023 में हुई एक सनसनीखेज घटना के मामले में उत्तराखंड राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण ने बड़ा फैसला सुनाया है। प्राधिकरण ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पिथौरागढ़ एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी लोकेश्वर सिंह को अवैध हिरासत में रखने, नग्न करके मारपीट करने और पद का दुरुपयोग करने का दोषी पाया है।
प्राधिकरण ने लोकेश्वर सिंह के खिलाफ विभागीय एवं दंडात्मक कार्रवाई की संस्तुति उत्तराखंड शासन के गृह विभाग को भेज दी है। साथ ही आदेश दिया है कि अधिकारी को सुनवाई का पूरा-पूरा अवसर दिया जाए। राज्य पुलिस प्राधिकरण के इस फैसले के बाद अब प्रदेश में चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब इस मामले में कार्रवाई हो सकती है, तो टिहरी के केशव थलवाल और अन्य मामलों में भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
- पीड़ित लक्ष्मी दत्त जोशी (निवासी पुराना बाजार, पिथौरागढ़) ने 8 फरवरी 2023 को नैनीताल स्थित जिला पुलिस शिकायत प्राधिकरण में शिकायत दर्ज कराई थी।
- शिकायत में आरोप लगाया गया कि 6 फरवरी 2023 को तत्कालीन एसपी लोकेश्वर सिंह और उनके साथ मौजूद अन्य छह पुलिसकर्मियों ने उन्हें एसपी ऑफिस (टकाना) में अवैध रूप से हिरासत में रखा, कपड़े उतरवाए और बेरहमी से पीटा।
- पीड़ित के अनुसार मारपीट से उन्हें गंभीर चोटें आईं, जिनकी मेडिकल एवं एक्स-रे रिपोर्ट भी प्राधिकरण को सौंपी गईं।
पुलिस अधिकारी का पक्ष
- अप्रैल 2023 में लोकेश्वर सिंह ने शपथ-पत्र दाखिल कर अपना बचाव किया। उनका कहना था कि लक्ष्मी दत्त जोशी आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है।
- उसके खिलाफ चंपावत व पिथौरागढ़ में गुंडा एक्ट, मारपीट, सरकारी काम में बाधा, आपराधिक धमकी आदि के कई मुकदमे दर्ज हैं।
- वाहनों में आग लगाने की एक घटना की पूछताछ के लिए उसे बुलाया गया था, मारपीट नहीं की गई।
पीड़ित का जवाबी शपथ-पत्र
- मई 2023 में लक्ष्मी दत्त जोशी ने जवाबी शपथ-पत्र दिया, जिसमें गंभीर आरोप लहए गए।
- सभी मुकदमे एसपी लोकेश्वर सिंह ने स्थानीय नेताओं से मिलीभगत कर उनके दबाव में झूठे दर्ज करवाए।
- अभी तक किसी भी मामले में कोर्ट ने उन्हें दोषी नहीं ठहराया है।
- 6 फरवरी 2023 को बिना कोई मुकदमा दर्ज किए अवैध हिरासत में रखकर मारपीट की गई।
लगभग तीन साल तक चली मैराथन सुनवाई में दोनों पक्षों को बार-बार बुलाकर उनका पक्ष सुना गया। आखिरकार राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण ने पूर्व आईपीएस अधिकारी को दोषी मानते हुए कार्रवाई की संस्तुति शासन को भेज दी है।
अब गेंद उत्तराखंड सरकार के गृह विभाग के पाले में है कि वह इस गंभीर मामले में पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है।
